शनिवार वाड़ा का रहस्य...

पुणे शहर के बीचो-बीच स्थित शनिवार वाड़ा एक ऐतिहासिक किला है, जो पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा 1732 में बनवाया गया था। यह किला पेशवाओं के शासनकाल का प्रतीक है और मराठा साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा है। लेकिन इसके इतिहास में एक ऐसा रहस्य भी छिपा है, जिसे आज भी लोग जानने को उत्सुक रहते हैं। 

शनिवार वाड़ा का निर्माण मराठा वास्तुकला की सुंदरता का अद्भुत उदाहरण है। इसका मुख्य द्वार ‘दिल्ली दरवाजा’ इतना विशाल है कि उसमें से हाथी भी आसानी से गुजर सकते थे। वाड़े में एक सुंदर महल था, जो पेशवा परिवार का निवास स्थान हुआ करता था। लेकिन इस वैभव के पीछे छिपी एक दर्दनाक दास्तान है। 

कहा जाता है कि इस किले में नरसंहार का एक दिल दहला देने वाला इतिहास है। सबसे प्रसिद्ध कहानी पेशवा नारायणराव की हत्या की है। 1773 में नारायणराव को उनके चाचा रघुनाथराव और चाची आनंदीबाई की साजिश में मार डाला गया था। नारायणराव की हत्या के बाद से, यह किला एक अभिशापित स्थान माना जाने लगा। 

स्थानीय लोगों के अनुसार, हर पूर्णिमा की रात को किले के अंदर से नारायणराव के चीखने की आवाजें आती हैं। "काका, माला वाचवा!" (काका, मुझे बचाओ!) ये उनकी अंतिम चीखें थीं। आज भी कई लोग दावा करते हैं कि उन्हें ये चीखें सुनाई देती हैं, जिससे यह जगह और भी रहस्यमय हो जाती है। 

1828 में, शनिवार वाड़ा में एक भयंकर आग लग गई थी, जिसने वाड़े के अधिकांश हिस्सों को नष्ट कर दिया। कहा जाता है कि इस आग के पीछे की असली वजह आज तक पता नहीं चल पाई है। कुछ लोग इसे अभिशाप का नतीजा मानते हैं, जबकि कुछ इसे एक सामान्य दुर्घटना मानते हैं। 

शनिवार वाड़ा केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं है, बल्कि एक ऐसा स्थान है जो अपने अतीत की अनसुलझी कहानियों के लिए भी जाना जाता है। इतिहासकार और शोधकर्ता आज भी इसके रहस्यों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन शायद इस किले की पूरी सच्चाई कभी भी सामने न आ पाए। यह किला अपने शौर्य और त्रासदी दोनों की कहानी बयां करता है, जो इतिहास के पन्नों में छिपी हुई है और आज भी हमारे दिलों में गूंज रही है।