संतान सप्तमी व्रत का परिचय-

संतान सप्तमी व्रत एक पवित्र हिन्दू उपवास है जिसे महिलाएं संतान प्राप्ति और उनके बच्चों की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है और हिन्दू परंपरा में इसका विशेष महत्व है।

समर्पित रानी की कहानी-

प्राचीन समय की बात है, एक रानी थी जो संतान की प्राप्ति के लिए लालायित थी। कई प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों के बावजूद, वह निःसंतान रही। एक दिन, एक ऋषि ने उसे संतान सप्तमी व्रत पूर्ण श्रद्धा से करने का सुझाव दिया।

व्रत का पालन-

रानी ने अडिग विश्वास के साथ संतान सप्तमी व्रत का पालन किया। उसने सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास किया, सूर्य देव की पूजा की और श्रद्धा के साथ व्रत कथा सुनी।

दिव्य आशीर्वाद-

रानी की भक्ति से प्रसन्न होकर, सूर्य देव उसके सामने प्रकट हुए और उसे संतान का आशीर्वाद दिया। समय आने पर, रानी ने एक स्वस्थ और वीर पुत्र को जन्म दिया, जिससे पूरे राज्य में खुशी का माहौल फैल गया।

संतान सप्तमी व्रत की विरासत-

रानी की आस्था और भक्ति ने संतान सप्तमी व्रत को महिलाओं के बीच लोकप्रिय बना दिया। आज भी माताएं अपने बच्चों की समृद्धि और दीर्घायु के लिए इस व्रत का पालन करती हैं, और विश्वास करती हैं कि अडिग भक्ति से सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।

निष्कर्ष-

संतान सप्तमी व्रत यह दर्शाता है कि भक्ति और विश्वास से सभी इच्छाएं पूर्ण हो सकती हैं। संतान सप्तमी व्रत के आशीर्वाद से सभी के जीवन में सुख और समृद्धि आए!